मेवाड़ में मूलपुरुष गुहिल (गुहदत्त) के बाद प्रसिद्धि और वीरता में बापा रावल का नाम आता है। बापा रावल का वास्तविक नाम कालभोज था। ऐतिहासिक प्रमाणों के अभाव में उनके शासनकाल व जीवन के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है। मुहणीत नैणसी व कर्नल टॉड ने बापा रावल के बारे में इस प्रकार लिखा है-"जब बापा का पिता नाग ईडर भीलों के हमले में मारा गया, उस समय बापा की अवस्था तीन वर्ष की थी जिस बड़नागर (नागर) जाति की कमलावती ब्राह्मणी ने पहले गुहिल की रक्षा की थी, उसी के वंशजो की शरण में बापा रावल की माता भी अपने पुत्र को लेकर चली गई ये लोग कुछ समय पश्चात् नागदा आ गये जहाँ बापा की भेंट हारित ऋषि से हुई जो एक झाड़ी में स्थापित एकलिंगजी की मूर्ति की पूजा किया करते थे। हरित अपने तपोबल से उसको राजवंशी व भविष्य में प्रतापी राजा होना जानकर उसे अपने पास बुलाने लगे। बापा रावल की एकलिंगजी में पूर्ण भक्ति तथा अपने गुरु की बड़ी श्रद्धा थी। गुरू ने उसकी भक्ति से अत्यन्त प्रसन्न हो उसके क्षत्रिय अनुरूप संस्कार किये और जब हारीत ऋषि ने बापा के शरीर को अमर करने के लिए पान दिया जो बापा के मुंह में न गिरकर पैर पर जा गिरा। इस पर ऋषि ने कहा कि यदि यह मुंह में गिरता तो तुम्हारा शरीर अमर हो जाता परन्तु पैर पर गिरा है इसलिए तुम्हारे पैरों के नीचे से मेवाड़ का राज्य नहीं जायेगा। इस प्रकार अपने गुरू से राजा होने का आर्शीवाद प्राप्त करने के पश्चात् बापा मान मौर्य के पास चित्तौड़ में रहने लगे और अन्त में चित्तौड़गढ़ का राज्य उससे छीन कर मेवाड़ के स्वामी बन गये। बापा ने बाद में "हिन्दुआ सूरज" 'राजगुरू' और 'चक्रवर्ती उपाधियाँ भी धारण की।
बापा रावल के बारे में यह भी प्रचलित है कि उन्होंने काबुल, कन्चार व खुरासान (ईरान) आदि पश्चिमी देशों पर चढ़ाई की तथा उन्हें पराजित कर वहाँ की अनेक राजकन्याओं से विवाह किया। इसके अतिरिक्त बापा रावल का खुरासान में ही मरना, मृत्यु पर उनके जलाने या गाड़ने के लिए हिन्दू-मुसलमानों का झगड़ा तथा अन्त में कबीर की तरह लाश की जगह फूल ही मिलना आदि अनेक दन्त-कथाएँ बापा रावल के विषय में प्रसिद्ध हैं।
इतिहासवेत्ताओं के अनुसार बापा रावल की मृत्यु नागदा (मेवाड़) में हुई थी। उसका
समाधि मन्दिर एकलिंगजी से लगभग 2 कि.मी. की दूरी पर अभी भी मौजूद है जो 'बापा रावल का
मन्दिर' के नाम से प्रसिद्ध है।
0 Comments